अनागतकी प्रतीक्षा
अनागतकी प्रतीक्षा
मदनमोहन तरुण
मैंने देखा
ऋतुएँ
वृक्षों में
निरन्तर यात्रा करती हुई
दिशाओं की खोज कर रही थीं
और
वृक्ष अपनी तमाम उँगलियाँ
आकाश की ओर उठाए
साश्चर्य ऊपर देखते हुए
प्रश्नचकित थे
नदियाँ आपने घूर्णावर्तों में
खुद की तलाश कर रही थीं
सारे मार्ग
सागर- सागर
ज्वार- ज्वार
विकल थे
आकाश टूट- फूट रहा था
पृथ्वी आलोडि॰त - विलोडि॰त
हो रही थी
हवाएँ हूहती हुई
कुछ तलाश कर रही थीं
खोई हुई दिशाओं
और
धारासार वर्षा से मिटे- मिटे
इतिहास के
अचिह्नित मार्गों पर
फिसल - फिसल रहा था
स्तंभित समय
किन्तु
इस आलोड॰न - विलोड॰न की
विषम वेला में भी
सृष्टि के नाभि- केन्द्र पर
पृथ्वी
मेरी उँगली थामे
खडी॰ थी
उस अनागत की प्रतीक्षा में
जिसकी आँखों में
सपने होतो हैं।
(मदनमोहन तरुण की पुस्तक
'मैं जगत की नवल गीता- दृष्टि' से साभार)
मदनमोहन तरुण
मैंने देखा
ऋतुएँ
वृक्षों में
निरन्तर यात्रा करती हुई
दिशाओं की खोज कर रही थीं
और
वृक्ष अपनी तमाम उँगलियाँ
आकाश की ओर उठाए
साश्चर्य ऊपर देखते हुए
प्रश्नचकित थे
नदियाँ आपने घूर्णावर्तों में
खुद की तलाश कर रही थीं
सारे मार्ग
सागर- सागर
ज्वार- ज्वार
विकल थे
आकाश टूट- फूट रहा था
पृथ्वी आलोडि॰त - विलोडि॰त
हो रही थी
हवाएँ हूहती हुई
कुछ तलाश कर रही थीं
खोई हुई दिशाओं
और
धारासार वर्षा से मिटे- मिटे
इतिहास के
अचिह्नित मार्गों पर
फिसल - फिसल रहा था
स्तंभित समय
किन्तु
इस आलोड॰न - विलोड॰न की
विषम वेला में भी
सृष्टि के नाभि- केन्द्र पर
पृथ्वी
मेरी उँगली थामे
खडी॰ थी
उस अनागत की प्रतीक्षा में
जिसकी आँखों में
सपने होतो हैं।
(मदनमोहन तरुण की पुस्तक
'मैं जगत की नवल गीता- दृष्टि' से साभार)
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