Saturday, October 21, 2006

मैं तुम्हारे पास

मैं तुम्हारे पास
मदनमोहन तरुण

मैं तुम्हारे पास कई बार गया हूँ
पुष्प के गंध की तरह
हवाओं में तैरता हुआ।

अग्नि की ऊष्मा की तरह
चेतना में घुलता।

दृष्टि की मुस्कान - सा
तुममें उतरता
चुपचाप।

ये दूरियाँ
अब मुझे उद्भान्त नहीं करतीं
तुम्हारी गुलाबी आभा के
खिलखिलाते स्पर्श में
जन्म लेती हैं
नयी - नयी सृष्टियाँ मुझमें।



(मदनमोहन तरुण की पुस्तक
' मैं जगत की नवल गीता - दृष्टि' से साभार)

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