Wednesday, November 29, 2006

तुम

तुम

मदनमोहन तरुण

यह तुम थीं चाँदनी रात में
बहती हुई नदी-सी।

तुम्हें देखा जल की गहराइयों में
खुलते गये दरवाजे
एक - के - बाद -एक....


(मदनमोहन तरुण की पुस्तक
'मै जगत की नवल गीता -दृष्टि'
से साभार )

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