कौन लिख गया
कौन लिख गया
मदनमोहन तरुण
तुम्हारे पक कर ललाते
सेव की तरह तरसते होठों पर
कौन लिख गया
चुम्बन की जगह
रक्तश्लथ भाषा में
मजहब की आयतें ?
कौन तुम्हारे नवागत यौवन के
हर्षित रोमांकुरों में
बाँध गया कफन के धागे ?
कौन फूलों की जगह
सींच रहा है
सूलियों को ?
किसने उगाई हैं तुम्हारे खेतों में
बारूदें ?
उफ !
अँधेरा किस तरह
हर चीज को निगलता
चला आरहा है !
तुम्हारे मासूम चेहरे को ढूँढ॰ना
हर पल
असम्भव होता जा रहा है।
गहराती ही जा रही है
यह जहरीली आँधी।
तुम्हीं में सँजोए थे
मैंने अपने सारे सपने,
तुम्हीं में देखा था
मैने अपना सारा भविष्य,
तुम्हीं , केवल तुम्हीं
नम थी सुबह की दूब -सी,
तुम्हीं तो थमी थी
आस्था की एक नन्हीं बूँद - सी
अग्नि की लपटों से घिरी
एस ताम्रवर्णी पत्ती पर।
ओह !
कहँ पसारूँ अब मैं अपने पंख ?
कहाँ टिकाऊँ अब मैं अपने पाँव ?
अब यहाँ ऐसी कोई चीज नजर नहीं आती
जो कहीं - न- कहीं से टूटी न हो।
,
(मदनमोहन तरुण की पुस्तक
'मै जगत की नवल गीता -दृष्टि'
से साभार )
मदनमोहन तरुण
तुम्हारे पक कर ललाते
सेव की तरह तरसते होठों पर
कौन लिख गया
चुम्बन की जगह
रक्तश्लथ भाषा में
मजहब की आयतें ?
कौन तुम्हारे नवागत यौवन के
हर्षित रोमांकुरों में
बाँध गया कफन के धागे ?
कौन फूलों की जगह
सींच रहा है
सूलियों को ?
किसने उगाई हैं तुम्हारे खेतों में
बारूदें ?
उफ !
अँधेरा किस तरह
हर चीज को निगलता
चला आरहा है !
तुम्हारे मासूम चेहरे को ढूँढ॰ना
हर पल
असम्भव होता जा रहा है।
गहराती ही जा रही है
यह जहरीली आँधी।
तुम्हीं में सँजोए थे
मैंने अपने सारे सपने,
तुम्हीं में देखा था
मैने अपना सारा भविष्य,
तुम्हीं , केवल तुम्हीं
नम थी सुबह की दूब -सी,
तुम्हीं तो थमी थी
आस्था की एक नन्हीं बूँद - सी
अग्नि की लपटों से घिरी
एस ताम्रवर्णी पत्ती पर।
ओह !
कहँ पसारूँ अब मैं अपने पंख ?
कहाँ टिकाऊँ अब मैं अपने पाँव ?
अब यहाँ ऐसी कोई चीज नजर नहीं आती
जो कहीं - न- कहीं से टूटी न हो।
,
(मदनमोहन तरुण की पुस्तक
'मै जगत की नवल गीता -दृष्टि'
से साभार )
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