हम कहाँ खिलें
हम कहाँ खिलें
मदनमोहन तरुण
सारे पन्ने तुम्हीं से भरे हैं
हम कहाँ खिलें ?
हर जगह तुम्हीं घेरे खडे॰ हो
हम कहाँ दिखें ?
पेडों॰ में, पौधों में, लताओं में
लिथडे॰ हो सिर्फ तुम्हीं,
हम कहाँ फलें ?
हर रोशनी तुम्हारे नाम से ही विज्यापित है
हम कहाँ बलें ?
हर पालने में गूँजती हैं तुम्हारी ही किलकारियाँ,
हम कहाँ पलें ?
डाली - डाली तुम्हारे नाम से ही सुरक्षित है
हम कहाँ खिलें ?
नदियों ,बियावानों, पहाडों॰, कछारों में
अब तुम्हीं तुम हो,
हम कहाँ मिलें ?
(मदनमोहन तरुण की पुस्तक
'मै जगत की नवल गीता -दृष्टि'
से साभार )
मदनमोहन तरुण
सारे पन्ने तुम्हीं से भरे हैं
हम कहाँ खिलें ?
हर जगह तुम्हीं घेरे खडे॰ हो
हम कहाँ दिखें ?
पेडों॰ में, पौधों में, लताओं में
लिथडे॰ हो सिर्फ तुम्हीं,
हम कहाँ फलें ?
हर रोशनी तुम्हारे नाम से ही विज्यापित है
हम कहाँ बलें ?
हर पालने में गूँजती हैं तुम्हारी ही किलकारियाँ,
हम कहाँ पलें ?
डाली - डाली तुम्हारे नाम से ही सुरक्षित है
हम कहाँ खिलें ?
नदियों ,बियावानों, पहाडों॰, कछारों में
अब तुम्हीं तुम हो,
हम कहाँ मिलें ?
(मदनमोहन तरुण की पुस्तक
'मै जगत की नवल गीता -दृष्टि'
से साभार )
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