Wednesday, November 29, 2006

बूढा॰ पेड॰

बूढा॰ पेड॰

मदनमोहन तरुण

बूढा॰ पेड॰
ठूँठा पेड॰
जीवन से रूठा पेड॰
भरी हरियाली में
व्यंग्य-सा खडा॰ है।

कवि इसे आँकेगा
शब्दों में साधेगा
क्यों कि
वह जानता है
कि
ऋतुओं का राजा
वसंत
सदा इन्हीं
डालियोँ की
टेढी॰-मेढी॰
पगडंडियों से ही आता है।

(मदनमोहन तरुण की पुस्तक
'मै जगत की नवल गीता -दृष्टि'
से साभार )

0 Comments:

Post a Comment

<< Home