MUN PEECHHE BHAAGTAA HAI
मन
पीछे भागता है
मदनमोहन
तरुण
याद
आ रही पुराने मित्रों की
छूट
रहे पीछे सब चित्रों की।
नहीं
रहे बाबूजी ,नहीं रहे बाबा
मइया
भी नहीं रही ,नहीं रहीं मामा।
तोता
को कौन अब पढा॰एगा
राम
नाम उसे कौन सि खाएगा
?
बोलsss
रुपू बोल sss
राम-
राम कहsss मुँह खोल sss।
कहाँ
गये विजय बाबू , मन अकुलाता है
भीतर
से नाम ले- ले कैसे चिल्लाता है!
ऊपर
से लगता हूँ मैं कितना शांत
भीतर
मन मथता है होकर आक्रांत।
पूछते
हैं लोग, कौन गाँव , कौन पुर
क्या
बताऊँ चला आया मैं कितनी दूर?
सबकुछ
है, बेटा, पुतोह ,पोता- पोती हैं
बेटी
–दामाद, बीबी आँख की जोती है
खुश
हैं सब बहनें ,बहनोई आबाद हैं
नाती
- नतिनी खुश हैं ,घर में गुंजार है
भाई
पटना में परिवार खुशहाल है
मगर
घेर लेती हैं सब पुरानी यादें
वर्तमान
बीते दिनों के पीछे भागे।
श्वसुर
जी की याद बहुत आती है
पत्नी
जब डबडब आँखों से बतियाती हैं
सास
नहीं रहीं ,नहीं रहा कोई अपना
मायका
अब हुआ उनकी आँखों का सपना।
मामू
को याद अब नहीं रहता
सामने
पडा॰ है क्या बैगन या भर्ता ?
दीदी
की याद बहुत आती है
मामा
की दुलारी , आँख मेरी भर आती है
सबका
दुख - सुख अपना - अपना है
सच
कहो तो जिन्दगी यह सपना है।
बादलों
में कुछ चेहरे बनते हैं, मिटते हैं
कुछ
तुरत खो जाते , कुछ जरा टिकते हैं।
जब
मैं इस कमरे में होता हूँ
लगता
है आँगन में सोता हूँ
मामा
सुनाती हैं खिस्सा
कहाँ
गये राजा, कहाँ गयीं रानी
बखरा
,बँटवारा और अलग -अलग हिस्सा
सोच-
सोच मन होता कैसा
सागर
में ज्वार उठे जैसा।
कितना
अजीब है इंसान
चलती
का नाम कहे गाडी॰
पर
देखता है पीछे
और
भागता पिछाडी॰।
फेसबुक
के सब चेहरे मेरे हैं
यही
तो इस जिन्दगी के घेरे हैं
कौन
है अपना और कौन है परायाधं
फर्क
नहीं लगता अब , सब उसकी माया।
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